मधुश्रावणी - नवविवाहिता कऽ पर्व अछि


"मधुश्रावणी" श्रावण मासक कृश्ण पक्ष चतुर्थी कऽ प्रारंभ होइत अछि आ शुक्ल पक्ष तृतीया कऽ समाप्त होइत अछि मुदा एकर विध चतुर्थीएँ सँ प्रारंभ होएत अछि।
प्रकृति, परंपरा आ परिवार कऽ जोड़य वला इऽ पावनि नवविवाहिता अपन नैहर मे मनबैथ छथि, मुदा पावनिक अवधिक कपड़ा-लत्ता, भोजन आ पूजा सामग्रीकऽ प्रयोग सासुरेकऽ कैल जाइत अछि। एहि दिन सँ नवविवाहिता लोकनि अरबा-अरबानि खाईत छथि। 13 दिन तक चलैय वाला एहि पूजाक लेल सबसँ पहिने एकटा कोबर बनाओल जाइत अछि। एकटा दीप जरा कऽ सासुर सँ पठाओल हरिदिक गौड़ आ एकगोट नैहरक सुपारी, संगे लग मे मैनाक पात पर धानक लावा राखि ओहि पर दूध चढ़ाओल जाइत अछि।

‘मधुश्रावणीकऽ’ अरिपन मुख्यरूपें मैनाक दूटा पात पर लिखल जाइत अछि। जतय व्रती बैसिकऽ पूजा करैत छथि आ एहिक दूनू कात जमीन पर सेहो अरिपन बनाओल जाइत अछि। जमीन परहक अरिपन के उपर मैनाक पात राखल जाइत अछि। बायाँ कातक पात पर सिन्दूर आ काजर सँ एक आंगुरक सहारा लय एक सौ एक सर्पिणीक चित्र बनाओल जाइत अछि, जे ‘एक सौ एकन्त बहिन’ कहाबैत छथि। एहि मे ‘कुसुमावती’ नामक नागिनक पूजाक प्रधानता अछि। पहिल दिन शिव-पार्वती समेत आन देवी-देवता क पूजा कैल जैत अछि। ओतय महिला पंडित कथा कहैत अछि। एकरा नवविवाहिता समेत आन महिलाआ सब सेहो सुनैत छथि। कथाकऽ क्रम मऽ शिव-पार्वती के विशेष चर्चा होइत अछि आ पतिव्रता धर्म कऽ संदेश देल जायत अछि। मान्य परंपरा क अनुसार अय अवधि म व्रती महिला नून नय खैत अछि। साँझ मे सजि-धजिकऽ सखी-बहिनपाक संग नवविवाहिता सब फूल लोढ़ै लेल जैत छथि। एकर दौरान हास-परिहास सँ वातावरण उल्लासमय भेल रहैत अछि। इ क्रम १३ दिन तक चलैत अछि।
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मधुश्रावणी पावनि मऽ गाबैय वला एकटा फकरा:-
दीप-दीपहरा आगू हरा मोती मानिक भरू धरा।
नाग बड़थु, नागिन बढ़थु, पाँचो बहिन, विषहरा बढ़थु।
बाल बसन्त भैय्या बढ़थु, डाढ़ि-खोढ़ि मौसी बढ़थु।
आशावरी पीसी बढ़थु, खोना-मोना मामा बढ़थु।
राही शब्द लए सुती, काँसा शब्द लए उठी।
होइत प्रात सोना कटोरामे दूध-भात खाइ।
साँझ सुती, प्रात उठी, पटोर पहिरी कचोर ओढ़ी।
ब्रह्माक देल कोदारि, विष्णुक चाँछल बाट।
भाग-भाग रे कीड़ा-मकोड़ा, ताहि बाटे आओत।
ईश्वर महादेव, पड़ए गरुड़केँ ठाठ।
आस्तीक, आस्तीक, आस्तीक

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