देवोत्थान (प्रबोधिनी) एकादशी अर्थात देवता के जगावय वला कथा आ मंत्र

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् 
जे कियो एकादशी तिथि के भगवान विष्णुक पूजन अभिवंदन करैत छथि समस्त दुख सौं मुक्त s जन्म मरण के बंधन सौं मुक्त s जैत छथि।
विष्णु पुराणक अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी के हरिशयनी एकादशी कहल जैत अछि। अहि दिन भगवान विष्णु चारि मासक लेल क्षीरसागर में शयन करबाक लेल चैल जैत अछि। चारि मासक बाद भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी के जगैत छथि। ताही कारणे कार्तिक एकादशी के देवोत्थान अर्थात देवता के जगेबाय वाला तिथि के रूप में मानेबाक प्रचलन पौराणिक काल सौं अछि। अहि एकादशी के तुलसी एकादश सेहो कहल जैत अछि। अहि दिन तुलसी विवाहक सेहो आयोजन कयल जैत अछि। आजूक दिन तुलसी जी केर विवाह शालिग्राम सौं कराओल जैत अछि । मान्यता अछि कि अहि तरहक के आयोजन सौं सौभाग्यक प्राप्ति होइट अछि । एहेन मान्यता अछि कि तुलसी शालिग्रामक विवाह करेला सौं ओहने पुण्य प्राप्त होइट अछि जे माता-पिता अपन पुत्रीक कन्यादान कs पबैत छथि ।अहि वर्ष ई एकादशी 22 नवम्बर 2015 के दिन अछि।
एक गोट पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु भाद्रपद मासक शुक्ल एकादशी के महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षसक संहार विशाल युद्धक बाद समाप्त केने छलाह तs थकावट दूर करबाक हेतु क्षीरसागर में जाs सुइत रहलाह आ चारि मासक पश्चात फेर जखन ओ उठलाह तs ओ दिन देवोत्थनी एकादशी कहायल। अहि दिन भगवान विष्णुक सपत्नीक आह्वान कय विधि विधान सौं पूजन करबाक चाही। अहि दिन उपवास करबाक विशेष महत्व अछि । अग्नि पुराण के अनुसार अहि एकादशी तिथि के उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक होइत अछि । विष्णुपुराण में कहल गेल अछि कि कोनो कारण सौं चाहे लोभ के वशीभूत भs, चाहे मोह के वशीभूत भs जे कियो एकादशी तिथि के भगवान विष्णुक पूजन अभिवंदन करैत छथि ओ समस्त दुख सौं मुक्त भs जन्म मरण के बंधन सौं मुक्त भs जैत छथि। ओतहि सनत कुमार अहि एकादशीक महत्त्ता केर वर्णन करैत लीखैत छथि कि जे व्यक्ति एकादशी व्रत या स्तुति नहीं करैत छथि ओ नरकक भोगी होइत छथि। महर्षि कात्यायन के अनुसार जे व्यक्ति संतति, सुख सम्पदा, धन धान्य व मुक्ति चाहैत छथि हुनका देवोत्थनी एकादशी के दिन विष्णु स्तुति, शालिग्राम व तुलसी महिमा के पाठ व व्रत रखबाक चाही।
भागवतपुराणक अनुसार विष्णु केर शयन कालक चारि माह में मांगलिक कार्यक आयोजन निषेध होइत अछि। शास्त्रोंक अनुसार श्रीहरि विष्णु अहि समय क्षीरसागर में शयन अवस्था में रहैत छथि तथा पृथ्वी अहि काल में रजस्वला रहैत अछि ।
भगवान के जगेबाक मंत्र :-
ऊँ ब्रह्मेन्द्र रुद्रैरभिवन्द्यमानो भवान ऋषिर्वन्दितवन्दनीय:।
प्राप्तां तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व-जागृष्व च लोकनाथ।।
मेघागता निर्मल पूर्ण चन्द्र: शरद्यपुष्पाणि मानोहराणि।
अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व च लोकनाथ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द! त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वया चोत्थीयमानेन उत्थितं भुवनत्रयम्



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