संपूर्ण मिथिला में संतान - संतति, संपत्ति, निरोगी काया, ऐश्वर्य आ ओजक रक्षा करै वला इ रैव-शैन पावैन दिनकर दीनानाथक अर्घ्य सौं टेकि छह मासक भार उठायल जाई छनि, अर्थात छह मास धरि सूर्य देवताक सेवाक भार। अगहन शुक्ल रैव सौं आरंभ भय बैसाख धरि चलै वला मिथिलाक अति श्रद्धेय इ महत्वपूर्ण पावैन मैथिल लक्ष्मी स्त्री बड श्रद्धा विश्वास आ पवित्रता सौं करै छथि।
एकदिन पूर्व लक्ष्मी स्वरूपा मिथिलानि अर्बा-अर्बाईन खाई छथि आ पुरूष लोकनि हाट-बजार जाई लडडू केरा बताशा आ अरघौती, बद्धी, आरतक पात आदि कीनि आनैत छथि। रैव दिन भोरे भोर मथिलानि स्नान कय पूर्व सौं नीपल धोल स्थान पर पवित्र बासन में ठकुआ बना पवित्र डाली में डांट लागल पानक पात मखान, सामयिक फल फूल, मधुर आदि सजा गोसाऊन के पूजा अर्चना कय नव वा पवित्र कपड़ा सौं डाली झांपि निकट पोखरीक घाट पर जा पूर्व सौं धोल स्थान पर डाली रखैत छथि। बहुतो अंगना सौं आयल श्रद्धा सौं बनायल पसरल डाली अति शोभनीय आ श्रद्धेय दृष्टिगोचर होईत अछि। तदुपरांत जे जल में ठार्ह भय दिनकर के अर्घ्य दान दैय छथि, पोखैर में स्नान कय घाट पर पवित्र पीढी में सिनूर-पिठार लगा कलशस्थापन कय धूप-दीप जरा फूल - चानन सौं दिनकरक अराधना कय बेराबेरी सब अंगना सौं आयल नैवेद्यक डाली ऊठा सूर्यदेव के अर्पण कय काँच दूधक ढार सौं अर्घ्यदान दय हुनक माहात्म्य पर आधारित कथा मनोयोग सौं सब लोकनि सुनै छथि। कथा समापन भेलापर दिनकर के प्रणाम कय सब अपन अपन डाली लय आंगन आवि गोसाऊनिक सिरा आगू में राखि सपरिवार गोसाऊन के प्रणाम कय बद्धी पहिर प्रसाद ग्रहण करै छथि। मिथिलानि आरतक पात के दुआइरक मोख पर साटि अपन सबकिछु दिनकर के अर्पण कय निश्चिन्त भय छह मास धरि सूर्यदेव के सेवा मनोयोग सौं करै छथि।
आई सौ सब रैव मिथिलानि बैसाख धरि छह मासधरि एकसंझा करैत छथि। बहुत मिथिलानि मास में एकटा रैवक एकसंझा करैत छथि आ आरो रैव के अनोना करैत छथि जिनका जेहेन श्रद्धा आ कबूला। इ क्रम बैशाख धैर चलैये जावे फेर दिनकर के दोसर अर्घ्य सौंपी छह मासक भार उतारल जायत।
आई नवका चूड़ा कूटि वा नवान्न पावैन दिनक कूटल चूड़ा सौं दिनकरक एकसंझाक नैवेद्य देल जाई छनि।
अद्भुत अतुलनीय अपन मिथिला संस्कृति परंपरा!
अनमोल आ दुर्लभ पावैन तिहार! आर समस्त सृष्टि में दोसर ठाम दृष्टि में नहिं।
जय हो दिनकर दीनानाथ!
एकदिन पूर्व लक्ष्मी स्वरूपा मिथिलानि अर्बा-अर्बाईन खाई छथि आ पुरूष लोकनि हाट-बजार जाई लडडू केरा बताशा आ अरघौती, बद्धी, आरतक पात आदि कीनि आनैत छथि। रैव दिन भोरे भोर मथिलानि स्नान कय पूर्व सौं नीपल धोल स्थान पर पवित्र बासन में ठकुआ बना पवित्र डाली में डांट लागल पानक पात मखान, सामयिक फल फूल, मधुर आदि सजा गोसाऊन के पूजा अर्चना कय नव वा पवित्र कपड़ा सौं डाली झांपि निकट पोखरीक घाट पर जा पूर्व सौं धोल स्थान पर डाली रखैत छथि। बहुतो अंगना सौं आयल श्रद्धा सौं बनायल पसरल डाली अति शोभनीय आ श्रद्धेय दृष्टिगोचर होईत अछि। तदुपरांत जे जल में ठार्ह भय दिनकर के अर्घ्य दान दैय छथि, पोखैर में स्नान कय घाट पर पवित्र पीढी में सिनूर-पिठार लगा कलशस्थापन कय धूप-दीप जरा फूल - चानन सौं दिनकरक अराधना कय बेराबेरी सब अंगना सौं आयल नैवेद्यक डाली ऊठा सूर्यदेव के अर्पण कय काँच दूधक ढार सौं अर्घ्यदान दय हुनक माहात्म्य पर आधारित कथा मनोयोग सौं सब लोकनि सुनै छथि। कथा समापन भेलापर दिनकर के प्रणाम कय सब अपन अपन डाली लय आंगन आवि गोसाऊनिक सिरा आगू में राखि सपरिवार गोसाऊन के प्रणाम कय बद्धी पहिर प्रसाद ग्रहण करै छथि। मिथिलानि आरतक पात के दुआइरक मोख पर साटि अपन सबकिछु दिनकर के अर्पण कय निश्चिन्त भय छह मास धरि सूर्यदेव के सेवा मनोयोग सौं करै छथि।
आई सौ सब रैव मिथिलानि बैसाख धरि छह मासधरि एकसंझा करैत छथि। बहुत मिथिलानि मास में एकटा रैवक एकसंझा करैत छथि आ आरो रैव के अनोना करैत छथि जिनका जेहेन श्रद्धा आ कबूला। इ क्रम बैशाख धैर चलैये जावे फेर दिनकर के दोसर अर्घ्य सौंपी छह मासक भार उतारल जायत।
आई नवका चूड़ा कूटि वा नवान्न पावैन दिनक कूटल चूड़ा सौं दिनकरक एकसंझाक नैवेद्य देल जाई छनि।
अद्भुत अतुलनीय अपन मिथिला संस्कृति परंपरा!
अनमोल आ दुर्लभ पावैन तिहार! आर समस्त सृष्टि में दोसर ठाम दृष्टि में नहिं।
जय हो दिनकर दीनानाथ!
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